Tuesday, April 26, 2011

गुलज़ार

जब भी यह दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है

होंठ चुपचाप बोलते हों जब
सांस कुछ तेज़-तेज़ चलती हो
आंखें जब दे रही हों आवाज़ें
ठंडी आहों में सांस जलती हो

आँख में तैरती हैं तसवीरें
तेरा चेहरा तेरा ख़याल लिए
आईना देखता है जब मुझको
एक मासूम सा सवाल लिए


कोई वादा नहीं किया लेकिन
क्यों तेरा इंतजार रहता है
बेवजह जब क़रार मिल जाए
दिल बड़ा बेकरार रहता है


जब भी यह दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
-गुलज़ार

9 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल| धन्यवाद|

Kailash Sharma said...

बहुत मर्मस्पर्शी गज़ल..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मेरी मनपसंद गजल, आभार।

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देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

Dinesh pareek said...

आप मेरे ब्लॉग पे आये अच्छा लगा और आपके विचारो पड कर मन प्रसन हो गया बस आप से येही आशा है की आप एसे ही मेरा उत्साह बढ़ाते रहेंगे

धन्यवाद्

Coral said...

कोई वादा नहीं किया लेकिन
क्यों तेरा इंतजार रहता है
बेवजह जब क़रार मिल जाए
दिल बड़ा बेकरार रहता है

क्या बात है .....

Apanatva said...

badiya gazal..

Vivek Jain said...

मैं आभारी हूँ आप सब का!
विवेक जैन

amit kumar srivastava said...

gulzar sahab ke kya kahne...vaah

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर रचना को पढवाने के लिये आभार..