Friday, April 22, 2011

उर्वशी से

प्रीति जब प्रथम-प्रथम जगती है,
दुर्लभ स्वप्न समान रम्य नारी नर को लगती है

कितनी गौरवमयी घड़ी वह भी नारी जीवन की
जब अजेय केसरी भूल सुध-बुध समस्त तन-मन की
पद पर रहता पड़ा, देखता अनिमिष नारी-मुख को,
क्षण-क्षण रोमाकुलित, भोगता गूढ़ अनिर्वच सुख को!
यही लग्न है वह जब नारी, जो चाहे, वह पा ले,
उडुऑ की मेखला, कौमुदी का दुकूल मंगवा ले.
रंगवा ले उंगलियाँ पदों की ऊषा के जावक से
सजवा ले आरती पूर्णिमा के विधु के पावक से.

तपोनिष्ठ नर का संचित ताप और ज्ञान ज्ञानी का,
मानशील का मान, गर्व गर्वीले, अभिमानी का,
सब चढ़ जाते भेंट, सहज ही प्रमदा के चरणों पर
कुछ भी बचा नहीं पाटा नारी से, उद्वेलित नर.

किन्तु, हाय, यह उद्वेलन भी कितना मायामय है !
उठता धधक सहज जिस आतुरता से पुरुष ह्रदय है,
उस आतुरता से न ज्वार आता नारी के मन में
रखा चाहती वह समेटकर सागर को बंधन में.

किन्तु बन्ध को तोड़ ज्वार नारी में जब जगता है
तब तक नर का प्रेम शिथिल, प्रशमित होने लगता है.
पुरुष चूमता हमें, अर्ध-निद्रा में हमको पाकर,
पर, हो जाता विमिख प्रेम के जग में हमें जगाकर.

और जगी रमणी प्राणों में लिए प्रेम की ज्वाला,
पंथ जोहती हुई पिरोती बैठ अश्रु की माला.
-रामधारी सिंह "दिनकर" (उर्वशी से)

14 comments:

Kunal Verma said...

बेहतरीन प्रस्तुति

Kunal Verma said...

बेहतरीन प्रस्तुति

Sushil Bakliwal said...

यथार्थ सत्य से पूरित उत्तम रचना ।

प्रवीण पाण्डेय said...

दिनकर की सशक्त रचना।

Vivek Jain said...

कुणाल जी,सुशील जी और प्रवीण जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद्।
विवेक जैन

Coral said...

बहुत सुन्दर रचना

www.rimjhim2010.blogspot.com

Dr (Miss) Sharad Singh said...

रामधारी सिंह "दिनकर" की रचना का रसास्वादन कराने के लिए आभार....

SANDEEP PANWAR said...

राम-राम जी,
दिनकर जी के साथ आपका भी आभार।

Kailash Sharma said...

दिनकर जी की ख़ूबसूरत रचना से परिचय कराने के लिये आभार..

महेन्‍द्र वर्मा said...

किन्तु बन्ध को तोड़ ज्वार नारी में जब जगता है
तब तक नर का प्रेम शिथिल प्रशमित होने लगता है
पुरुष चूमता हमें, अर्ध-निद्रा में हमको पाकर,
पर, हो जाता विमिख प्रेम के जग में हमें जगाकर।

दिनकर जी की कविता प्रस्तुत करने के लिए आभार।

दिगम्बर नासवा said...

दिनकर ji की सशक्त रचना ...

Unknown said...

you are doing a good work.
thank

डॉ. मोनिका शर्मा said...

दिनकर जी की उत्कृष्ट रचना पढवाने का आभार

Vivek Jain said...

मेरे इस ब्लॉग पर आने और प्रोत्साहन के लिये आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
विवेक जैन