Monday, May 2, 2011

आगे चले चलो

अपवाद भय या कीर्ति प्रेम से निरत न हो,
यदि ख़ूब सोच-समझ कर मार्ग चुन लिया।
प्रेरित हुए हो सत्य के विश्वास, प्रेम से,
तो धार्य नियम, शौर्य से आगे चले चलो।

वह अभीष्ट सामने बाएँ न दाहिने-
भटके इधर-उधर न बस फिर दृष्टि वहाँ है।
उस दिव्य शुद्ध-मूर्त्ति का ही ध्यान मन रहे,
और धुन रहे सदा ही यही- आगे चले चलो।

अह, दाहिने वह क्या है दूब? कमली? गुलाब?
और बाएँ लहर मारते नाले बुला रहे।
वह क्या वहाँ है गीत मृदुल, मंजु मनोहर।
पर इनसे प्रयोजन ही क्या- आगे चले चलो।

स्थिर चमक वह सूर्य-सी संकेत कर रही,
कहती है, "विघ्न-व्याधि को सह लो ज़रा-सा और।"
वह माद थकावट सभी होने को दूर है,
यह ध्यान रहे किन्तु कि- आगे चले चलो।

यह देखिए उस ओर कोई जीभ निराता,
कोई तालियाँ है पीटता कहता है- भण्ड से।
पर ध्वनि कहाँ से आई यह- आगे चले चलो।

कुछ देखते हैं चश्मा चढ़ाए हुए यह कृत्य :
होते हैं कभी क्रुद्ध तो हँसते हैं कभी-कभी।
वश हो के दुराग्रह के कभी भ्रष्ट भी कहते,
परवा न करो तुम कभी- आगे चले चलो।

यदि सत्य के आधार पर है मार्ग तुम्हारा,
चिन्ता नहीं जो विघ्न के काँटों से पूर्ण हो।
अफ़वाह है अशक्य तुम्हें भीत करने में,
बस अपनी धुन में मस्त रह- आगे चले चलो।

बस होना दुराग्रह के है मानव प्रकृति सदा,
निर्भर्न्तना,धुतकर्म, हँसी, सन्तती उसकी।
काँटें हैं और गर्त भी अनिवार्य उसके अंग।
पर सत्य तुम्हारी ही है- आगे चले चलो।

जो मित्र था कभी वह बनेगा अमित्र शीघ्र,
दम भरता जो सहाय का वह मुँह बनाएगा।
पीछे भी चलने वाले अब पिछड़ेंगे बहुत दूर,
एकान्त शान्त हो के तुम आगे चले चलो।

काँटें गड़ेंगे पग में अकेले सहोगे पीर,
उल्टे हँसेंगे लोग तुम्हारी कराह पर।
कुछ गालियाँ भी देंगे- पर यह तो स्वभाव है,
छोड़ो उन्हें उन्हीं को, तुम आगे चले चलो।

पद का लोहू न पोंछना यह विजय-चिन्ह है,
छाती कड़ी करो तनिक, सिर को भी उठा लो।
अपवाद पर हँस दो ज़रा चिन्ता न कुछ करो,
उस सत्य को ले साथ बस- आगे चले चलो।

धमकी से न भयभीत हो, कुढ़्ना भी न मन में
यदि कोई बुरा कहता है तो कहने दो उसे तुम।
निर्बल है भृकुटि-भंग वह तुम आँख मिला लो,
और ध्यान धर जगदीश का आगे चले चलो।

रचनाकाल : 1914

-वृन्दावनलाल वर्मा

5 comments:

Shalini kaushik said...

धमकी से न भयभीत हो, कुढ़्ना भी न मन में
यदि कोई बुरा कहता है तो कहने दो उसे तुम।
निर्बल है भृकुटि-भंग वह तुम आँख मिला लो,
और ध्यान धर जगदीश का आगे चले चलो।
vrindavan lal verma ji kee ye kavita yahan prastut kar vivek ji aapne ek naye utsah ka sanchar kiya hai.aabhar

प्रवीण पाण्डेय said...

आभार इस प्रस्तुति का।

aarkay said...

prastuti ke liye aabhaar !

Kailash Sharma said...

पद का लोहू न पोंछना यह विजय-चिन्ह है,
छाती कड़ी करो तनिक, सिर को भी उठा लो।
अपवाद पर हँस दो ज़रा चिन्ता न कुछ करो,
उस सत्य को ले साथ बस- आगे चले चलो।

...एक प्रेरक प्रस्तुति से परिचय कराने के लिये आभार..

Vivek Jain said...

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
विवेक जैन