कोई एहसान नहीं किया हमने तुम पर !
यह तो तुम्हारा अधिकार था और हमारा कर्तव्य !
पीढियों का ऋण चढा था जो हम पर ,
उतार, दिया तुमने आनन्द और सुख !
आभार तुम्हारा !
आत्मज मेरे !
हमारा अस्तित्व व्याप्त रहेगा ,
जहाँ तक जायेगा तुम्हारा विस्तार !
तुम्हारा विकसता व्यक्तित्व सँवारने में,
चूक गये होंगे कितनी बार
आड़े आ गई होंगी हमारी सीमायें !
पर तुम्हारे लिये खुली हैं आ-क्षितिज दिशायें !
विस्तृत आकाश में उड़ान भरते
कोई द्विविधा मन में सिर न उठाये
कोई आशंका व्याप न जाये !
चलना है बहुत आगे तक ,
समर्थ हो तुम !
शान्त और प्रसन्न मन से
तुम्हें मुक्त कर देना चाहती हूँ अब
और स्वयं को भी -
हर बंधन से, भार से, अपेक्षा और अधिकार से,
कि निश्तिन्त और निर्द्वंद्व रहें हम !
जी सकें सहज जीवन, अपने अपने ढंग से !
क्योंकि प्यार बाँधता नहीं मुक्त करता है
और तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ मैं !
-प्रतिभा सक्सेना
Saturday, May 7, 2011
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13 comments:
आभार सुन्दर कविता पढ़वाने का, प्रतिभाजी के ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ।
प्रतिभा जी की एक और खूबसूरत रचना ...आभार
प्रवीण जी, आपका आभारी हूँ।
संगीता जी, नहीं पता आपका किन शब्दों में शुक्रिया अदा करुँ।
विवेक जैन
mukhar dristikon ,sunder srijan,
क्योंकि प्यार बाँधता नहीं मुक्त करता है
और तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ मैं !
badhayi ji .
प्रतिभा जी बहुत खूबसूरत रचना. आभार.
विस्तृत आकाश में उड़ान भरते
कोई द्विविधा मन में सिर न उठाये
कोई आशंका व्याप न जाये !
चलना है बहुत आगे तक ,
समर्थ हो तुम ! ... bahut hi badhiyaa rachna
उन अभिभावकों के लिए सीख है जो बच्चों को एक एहसान की तरह पालते हैं ...
निश्छल प्रेम स्वतंत्र ही करता है , बंधनों में नहीं बांधता...
बहुत सुन्दर !
bahut hi pyari si rachna!
मुक्त कर दिया आपने बच्चों को आ-क्षितिज विस्तार के लिए ...यही मुक्ति बच्चों को घर की तरफ लौटने को मजबूर करती है यानि बाँध लिया आपने यूँ मुक्त करके साधुवाद
bahut sunder rachanaa,aek siksha deti hui ki pyaar bandhan nahi mukti hai aur ye mukti hi apne aap bandhan main baandh deta hai.
man ko chunewaali bhaavpoorn rachanaa.
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