Thursday, May 5, 2011

प्रयाण गीत


वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

प्रपात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चंद्र से बढ़े चलो
वीर, तुम बढ़े चलो धीर, तुम बढ़े चलो।

एक ध्वज लिए हुए एक प्रण किए हुए
मातृ भूमि के लिए पितृ भूमि के लिए
वीर तुम बढ़े चला! धीर तुम बढ़े चलो!

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही प्रभावित करता है यह गीत।

Kailash Sharma said...

बहुत ही ओजपूर्ण गीत..बचपन में जिस गीत को गाया करते थे,आज फिर याद दिला दिया ...

Dr Varsha Singh said...

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

विलक्षण गीत...

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई विवेक जी अपने बचपन की यादें ताजा कर दिया |माहेश्वरी जी की यह कविता हम लोग छोटी कक्षाओं में पढ़ चुके हैं आभार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत प्रभावित करता ...ओजपूर्ण गीत ...

Patali-The-Village said...

बचपन में जिस गीत को गाया करते थे,आज फिर याद दिलाने के लिए धन्यवाद|

निर्मला कपिला said...

ऐसे गीत आज की आवश्यकता है जब कि लोग देशप्रेम के प्रति उदासीन हैं । प्रेरणा देता गीत पढवाने के लिये धन्यवाद।

Dr Kiran Mishra said...

geet ke bol achchhe hai.

अविनाश मिश्र said...

वाह बहुत ही सुन्दर
कक्षा 5 या 4 में पढ़ी थी ये कविता
धन्यवाद

SANDEEP PANWAR said...

कई साल बाद सामने आया ये गीत।

Vivek Jain said...

आप सभी का बहुत बहुत आभार!
विवेक जैन