खग! उड़ते रहना जीवन भर!
भूल गया है तू अपना पथ,
और नहीं पंखों में भी गति,
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
मत डर प्रलय-झकोरों से तू,
बढ़ आशा-हलकोरों से तू,
क्षण में यह अरि-दल मिट जाएगा तेरे पंखों से पिसकर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
यदि तू लौट पड़ेगा थक कर,
अंधड़ काल-बवंडर से डर,
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझको हँस-हँसकर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
और मिट गया चलते-चलते,
मंज़िल पथ तय करते-करते,
तेरी खाक चढ़ाएगा जग उन्नत भाल और आँखों पर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
-गोपाल दास नीरज
Friday, May 20, 2011
खग उड़ते रहना जीवन भर
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14 comments:
vivek ji
bahut bahut sundar .
jivan ko prerit tatha utsaah ko badhane wali behtreen post .khag ki upma dekar aapne insaan ke jivan me hone wali pareshaniyon ka samna karne ka bhaut hi sundar vikalp aur usse jujh kar nirantar aage badhte rahne ki prerana di hai .
bahut behatreen post
badhai
poonam
नीरज जी की सुन्दर प्रेरणास्पद कविता, धन्यवाद.
प्रेरणादाई प्रस्तुति
बहुत सुन्दर और मधुर गीत!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
प्रेरणादायी रचना है श्री नीरज जी की.
इस प्रस्तुति के लिए आपका धन्यवाद!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/
नीरज जी की इतनी सुन्दर रचना से परिचय कराने के लिये आभार..
neeraj ji ki rachnayo ke liye aabhar
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, ('बारामासा' - अमरनाथ यात्रा पर कमेन्ट के मार्फ़त) एक से एक सुन्दर रचनाएँ देखकर लगता है काफी देर कर दी. क्षमा चाहूंगा. ......... श्रेष्टतम रचनाओं को प्रस्तुत कर आप सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य की सेवा कर रहे हैं. आभार.
Please follow.मेरा ब्लॉग है ---- baramasa98.blogspot.com
- बारामासा की पोस्ट पर प्रतिक्रिया देकर सदैव अपना सहयोग बनाये रखेंगे, इन्ही शुभकामनाओं के साथ. ........... शेष फिर.
आप सभी का बहुत बहुत आभार
विवेक जैन
सर इसका अर्थ भी बता दीजिये
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