यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!
था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
-त्रिलोचन
Tuesday, May 17, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
20 comments:
"कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी। "
कोई है अनदेखा..
जो दिखाई भी देता है
और सुनाई भी...!!
बहुत सुन्दर...!!
जड़ता है जीवन की पीड़ा ,
निस -तरंग पाषाणी क्रीडा ,
तुमने अनजाने वह पीड़ा ,
छवि के शर से दूर भगा दी ।
शुक्रिया कवि त्रिलोचन सिंह की कविता पढवाने के लिए .
सुंदर कविता ..मन मोहक !
हिंदी में लिखने वाला विजेट ऊपर लगाए .धन्यवाद
वाह, बहुत सुन्दर।
कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
बहुत बढ़िया।
आपको ढेरों बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mkringtones.blogspot.com
http://mktvfilms.blogspot.com
सर, कमाल कर रक्खा है आपने | बड़ी अच्छी-अच्छी ग़ज़लें , व् नज्में पड़ने का मौका दिया है | शुक्रिया
था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
bahut achchi abhibyakti,sundre shabdon ka chayan.badhaai aapko.
please visit my blog and leave the comments also.thanks
बहुत अच्छी साहित्यिक रचना
था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
..........
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ आभार ...
त्रिलोचन जी की सुंदर कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद श्रीमान
त्रिलोचन शास्त्री जी कविता अच्छी लगी, धन्यवाद.
हमारे लिए त्रिलोचन जी की कविता प्रस्तुत करने हेतु आभार।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
- विवेक जैन
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ आभार ...
बहुत ही बढ़िया कविता बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर
बहुत खुब। आपके प्रयास से इतने प्रख्यात लोगों की रचना पढ़ने को मिल रही है।
जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
bahut sunder bhav .bahut achchha likha hai
rachana
सात्विक भाव लिए,सुन्दर गीत।
त्रिलोचन जी की इतनी भावपुर्ण और सुन्दर कविता से परिचय के लिये आभार..
विवेक जी सुन्दर रचना -परिचय की वो गाँठ -हो जाता है ऐसे भी
जाने कौन लहर थी उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
बधाई हो
Post a Comment