प्यार ने आग पानी को देखा नहीं;
होम होती जवानी को देखा नहीं।
ताज ठुकरा दिया बोझ सिर का समझ,
प्यार ने हुक्मरानी को देखा नहीं।
प्यार की राह में मोड़ ही मोड़ हैं,
मोड़ लेती कहानी को देखा नहीं।
गिर गई गांठ से कब कहाँ क्या पता,
प्यार की उस निशानी को देखा नही।
प्यार केवल फकीरी ही करती रही,
करते राजा या रानी को देखा नहीं।
तुमने देखा ही क्या ज़िन्दगी में अगर,
प्यार की मेहरबानी को देखा नहीं।
बोलने से भी ज्यादा असरदार है,
प्यार की बेजुबानी को देखा नहीं।
है समर्पण है विश्वास है आस्था,
प्यार ने बदगुमानी को देखा नहीं।
गूढ़ भाषा 'भरद्वाज' है प्यार की,
पढ़ते पंडित या ग्यानी को देखा नहीं।
-चंद्रभानु भारद्वाज
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9 comments:
है समर्पण है विश्वास है आस्था,
प्यार ने बदगुमानी को देखा नहीं।
vivek chandrabhanu bharadwaj ji kee ye panktiyan jo aapne aaj yahan prastut ki hain ye aaj ke samaj ke liye janni bahut zaroori hain taki samaj me prem apne sahi swaroop me virajman ho sake.aabhar.
प्यार की भाषा कौन पढ़ाये,
जो सच जाने, मौन बहाये।
गिर गई गांठ से कब कहाँ क्या पता,
प्यार की उस निशानी को देखा नही।
प्यार केवल फकीरी ही करती रही,
करते राजा या रानी को देखा नहीं।
तुमने देखा ही क्या ज़िन्दगी में अगर,
प्यार की मेहरबानी को देखा नहीं।
bahut hi achchi rachanaa badhaai aapko.
सुन्दर....
बोलने से भी ज्यादा असरदार है,
प्यार की बेजुबानी को देखा नहीं ...
बहुत खूब ... लाजवाब ग़ज़ल है ... प्यार के अनोखे अंदाज़ ...
प्यार की राह में मोड़ ही मोड़ हैं,
मोड़ लेती कहानी को देखा नहीं।
वाह विवेक जी
बहुत सुन्दर काव्य
धन्यवाद
avinash001.blogspot.com
लाजवाब ग़ज़ल है
Nice Written Vivek ji...
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