Sunday, September 4, 2011

है नमन उनको

है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत मैं शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं.
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े, पर आसमानी हो गए हैं

पिता, जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुल-वंश-माथा
माँ, वही जो दूध से इस देश की रज तोल आई
बहन, जिसने सावनों में भर लिया पतझड़ स्वयं ही
हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई
बेटियाँ जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थीं
"पिता' तुम पर गर्व है चुपचाप जा कर बोल आई
प्रिया, जिसकी चूड़ियों में सितारे से टूटते हैं
मांग का सिन्दूर देकर जो सितारे मोल लाई
है नमन उस देहरी को जहां तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे, परम तप की राजधानी हो गए हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए हैं

हमने भेजे हैं सिकंदर सर झुकाए, मात खाए
हमसे भिड़ते हैं वे, जिनका मन, धरा से भर गया है
नरक मैं तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयान है
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला मैं क्या अजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुराणी है हमारी
उत्तरों की खोज मैं फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल-कौतुक जिनके आगे पानी-पानी हो गए हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए हैं

लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उद्घोष गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाओं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन, तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित, माँ के नयनं, तुमको नमन है
कंचनी-तन, चांदनी-मन, आह, आंसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हिट कर चले सब कुछ नमन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गए हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए हैं


- कुमार विश्वास

12 comments:

Shalini kaushik said...

kumar vishvas ji kee sundar bhavon se saji ye kavita prastut karne ke liye aabhar vivek ji.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
श्रमजीवी महिलाओं को लेकर कानूनी जागरूकता
रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा

Rajesh Kumari said...

kumar vishvaas ji ki behtreen prerak kavita ko padhvaane ka bahut bahut shukriya Vivek ji.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर रचना है।

रविकर said...

हमने भेजे हैं सिकंदर सर झुकाए, मात खाए
हमसे भिड़ते हैं वे, जिनका मन, धरा से भर गया है ||
नरक मैं तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयान है ||


बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

सादर --

बधाई |

मदन शर्मा said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
यह आपकी अच्छी भावनाओं को प्रकट करता है.....
सादर बधाई |

मदन शर्मा said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
यह आपकी अच्छी भावनाओं को प्रकट करता है.....
सादर बधाई |

Vaanbhatt said...

कुमार विश्वास को पढना एक अनूठा अनुभव है...और सुनना...दूसरा...

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aapke blog per aaker lagta hai..abhi jaise shuru hamne safar apna kiya ho...abhi jaise meelon meelon door per manjil kahin ho...hardik badhayee//i in vite you to join my blog my unveil emotions..mujhe behad khushi hogi

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अच्छी प्रस्तुति...
आभार...

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही सुन्दर रचना है।....आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छी रचना ... सुन्दर प्रस्तुति

रेखा said...

कुमार विश्वास की रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद ..