सब जीवन बीता जाता है
धूप छाँह के खेल सदॄश
सब जीवन बीता जाता है
समय भागता है प्रतिक्षण में,
नव-अतीत के तुषार-कण में,
हमें लगा कर भविष्य-रण में,
आप कहाँ छिप जाता है
सब जीवन बीता जाता है
बुल्ले, नहर, हवा के झोंके,
मेघ और बिजली के टोंके,
किसका साहस है कुछ रोके,
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीता जाता है
वंशी को बस बज जाने दो,
मीठी मीड़ों को आने दो,
आँख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है
सब जीवन बीता जाता है.
-जयशंकर प्रसाद
Monday, April 4, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
9 comments:
जयशंकर प्रसाद की सुन्दर रचना की सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग
http://samkalinkathayatra.blogspot.com/
एवं
http://amirrorofindianhistory.blogspot.com/
पर भी आपका स्वागत है !
Thanks Ms Sharad Singh Ji. And i have alredy visited your blog, thats really Nice.
अति सुन्दर।
बुल्ले, नहर, हवा के झोंके,
मेघ और बिजली के टोंके,
किसका साहस है कुछ रोके,
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीता जाता है ..
बहुत सुंदर रचना है ... नवरस संचार करती ...
भाई विवेक जैन जी बहुत ही साहित्यिक ब्लॉग है आपका अच्छा लगा बधाई और शुभकामनाएं |
भाई विवेक जैन जी बहुत ही साहित्यिक ब्लॉग है आपका अच्छा लगा बधाई और शुभकामनाएं |
Thans a lot to all
वंशी को बस बज जाने दो,
मीठी मीड़ों को आने दो,
आँख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है
बहुत सुंदर साहित्यिक रचना है
जयशंकर प्रसाद की सुन्दर रचना पढवाने का आभार ....
Post a Comment