अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला,
यहाँ अम्बवा तरे रुक
एक पल विश्राम लेना,
मिलो जब गांव भर से बात कहना, बात सुनना
भूल कर मेरा
न हरगिज नाम लेना |
अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे,
हंसी में टाल देना बात,
आंसू थाम लेना |
शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें रंभाएं
नींद में खो जाये जब
खामोश डाली आम की,
तड़पती पगडंडियों से पूछना मेरा पता,
तुमको बताएंगी कथा मेरी
व्यथा हर शाम की |
पर न अपना मन दुखाना, मोह क्या उसका
की जिसका नेह छूटा, गेह छूटा
हर नगर परदेश है जिसके लिए,
हर डगरिया राम की |
भोर फूटे भाभियां जब गोद भर आशीष दे दे,
ले विदा अमराइयों से
चल पड़े डोला हुमच कर,
है कसम तुमको, तुम्हारे कोंपलों से नैन में आंसू न आये
राह में पाकड़ तले
सुनसान पा कर |
प्रीत ही सब कुछ नहीं है, लोक की मरजाद है सबसे बड़ी
बोलना रुन्धते गले से
ले चलो जल्दी चलो पी के नगर |
पी मिलें जब,
फूल सी अंगुली दबा कर चुटकियाँ लें और पूछे
क्यों
कहो कैसी रही जी यह सफ़र की रात ?
हंस कर टाल जाना बात,
हंस कर टाल जाना बात, आंसू थाम लेना
यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना,
अगर डोला कभी इस राह से गुजरे |
-धर्मवीर भारती
Sunday, April 17, 2011
अगर डोला कभी इस राह से गुजरे
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7 comments:
बिदा होती कन्या के मनोभावों का सुंदर चित्रण किया है धर्मवीर भारती जी ने।
उनकी रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार।
वाह।
कोमल भाव। सहज अभिव्यक्ति।
बहुत ही अच्छी कवितायें हैं आपके ब्लाग पर..
भारती जी की यह प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय कविता दसवीं के पाठ्यक्रम में थी पर उस समय निहित भावनाओं की समझ न थी. आज इस कविता का अर्थ-भावार्थ सब समझ में आता है .
प्रस्तुति के लिए आभार !
विवेक जैन जी !धर्मवीर भारती ,जयशंकर प्रसाद ,और सुमित्रानंदन पन्त सभी की चुनिन्दा रचना सजाये आप ब्लॉग की ,चिठ्ठे की दुनिया में आये ,सभी चिठ्ठाकारों ,ब्लोगियों ,ब्लोगार्थियों और ब्लोगाचार्यों की ओर से मैं आपका खैर मकदम करता हूँ .आदाब !
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