झूठ आज से नहीं
अनन्त काल से
रथ पर सवार है
और सच चल रहा है
पाँव-पाँव
नदी पहाड़ काँटे और फूल
और धूल
और ऊबड़-खाबड़ रास्ते
सब सच ने जाने हैं
झूठ तो
समान एक आसमान में उड़ता है
और उतर जाता है
जहाँ चाहता है
क्रमश: बदली है
झूठ ने सवारियाँ
आज तो वह सुपरसॉनिक पर है
और सच आज भी
पाँव-पाँव चल रहा है
इतना ही हो सकता है किसी-दिन
कि देखें हम
सच सुस्ता रहा है
थोड़ी देर छाँव में
और
सुपरसॉनिक किसी झँझट में पड़कर
जल रहा है
-भवानी प्रसाद मिश्र
Tuesday, April 5, 2011
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5 comments:
आज भी रचना यथार्थ के करीब और समसामयिक है..इतनी उत्कृष्ट रचना पढवाने के लिये धन्यवाद.
रचना यथार्थ को बहुत ही नजदीक से दिखाती हुई प्रतीक होती है.. सार्थक लेखन के लिए बधाई...
आज ही सत्य है।
आप सब का बहुत-बहुत आभार-
विवेक जैन
आज भी रचना यथार्थ के करीब और समसामयिक है|
धन्यवाद|
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