Tuesday, May 24, 2011

मेरा धन है स्वाधीन क़लम

राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम
जिसने तलवार शिवा को दी
रोशनी उधार दिवा को दी
पतवार थमा दी लहरों को
खंजर की धार हवा को दी
अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

रस-गंगा लहरा देती है
मस्ती-ध्वज फहरा देती है
चालीस करोड़ों की भोली
किस्मत पर पहरा देती है
संग्राम-क्रांति का बिगुल यही है, यही प्यार की बीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

कोई जनता को क्या लूटे
कोई दुखियों पर क्या टूटे
कोई भी लाख प्रचार करे
सच्चा बनकर झूठे-झूठे
अनमोल सत्य का रत्‍नहार, लाती चोरों से छीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

बस मेरे पास हृदय-भर है
यह भी जग को न्योछावर है
लिखता हूँ तो मेरे आगे
सारा ब्रह्मांड विषय-भर है
रँगती चलती संसार-पटी, यह सपनों की रंगीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन कलम

लिखता हूँ अपनी मर्ज़ी से
बचता हूँ कैंची-दर्ज़ी से
आदत न रही कुछ लिखने की
निंदा-वंदन खुदगर्ज़ी से
कोई छेड़े तो तन जाती, बन जाती है संगीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम
-गोपाल सिंह नेपाली

23 comments:

शूरवीर रावत said...

गोपाल सिंह नेपाली जी का यह जन्मशती वर्ष भी है और ऐसे में ब्लॉग पर उनकी कविता देना सच्ची श्रृद्धांजलि है. आभार.
मेरा ब्लॉग है. Please follow - baramasa98.blogspot.com

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी रचना पढ़वाने का शुक्रिया।

Sushil Bakliwal said...

उत्तम कविता... । वाकई स्वाधीन कलम की ताकत धनी को भी पराजित कर ही देती है ।

G.N.SHAW said...

कलम की ताकत बारूदो से भी मजबूत होती है !

Unknown said...

गोपाल सिंह नेपाली जी सच्ची श्रृद्धांजलि

Shalini kaushik said...

gopal singh nepali ji kee sundar rachna padhvane ke liye aabhar.

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्द में बल है।

Sawai Singh Rajpurohit said...

बेहद खूबसूरत कविता.

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

bahut sundar prayas hai aapka jo aapne Nepali ji ko yad kiya- prastut kiya

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

bahut sundar prayas hai aapka jo aapne Nepali ji ko yad kiya- prastut kiya

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

bahut sundar prayas hai aapka jo aapne Nepali ji ko yad kiya- prastut kiya

दिगम्बर नासवा said...

एक लाजवाब ... प्रभावी रचना पढ़वाने का शुक्रिया ...

Kailash Sharma said...

एक सुन्दर रचना पढवाने का शुक्रिया..

Vaanbhatt said...

तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है...धन्यवाद...

Vivek Jain said...

आप सभी का धन्यवाद
-विवेक जैन

Bharat Bhushan said...

गोपाल सिंह नेपाली की कलम की धार बहुत तेज़ है. इतनी बढ़िया रचना पढ़वाने के लिए आपका आभार.

Jyoti Mishra said...

You have indeed the most powerful treasure in your hands... Keep posting.

Kavita Saharia said...

Very powerful .Thanks for posting it.

Anonymous said...

तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

गोपाल सिंह नेपाली जी की रचना पढवाने के लिए साभार धन्यवाद्

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

sasakt lekhan ......... aabhar

Satish Chandra Satyarthi said...

काफी अच्छी रचनाओं का संकलन है आपके ब्लॉग पर...

संध्या शर्मा said...

मेरा धन है स्वाधीन क़लम...
गोपाल सिंह नेपाली जी की रचना पढवाने के लिए साभार धन्यवाद.......

Amrita Tanmay said...

लिखता हूँ तो मेरे आगे
सारा ब्रह्मांड विषय-भर है
बेहतरीन रचना..नेपाली जी की रचना पढवाने के लिए साभार