Tuesday, May 31, 2011

मैं नीर भरी दुख की बदली

मैं नीर भरी दुख की बदली!

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झणी मचली!

मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली!

मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!

पथ न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन हो अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी कल थी मिट आज चली!
-महादेवी वर्मा

29 comments:

Anju (Anu) Chaudhary said...

yaha aise mahadevi varma ji ko padhna sukhad laga...bahut khub

Kailash Sharma said...

इस कालजयी रचना को फिर से पढवाने के लिये आभार...

Roshi said...

bachpan mein pada tha punah parbane ke liye dhanyabad

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत ही सुन्दर रचना और उम्दा प्रस्तुती!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

महादेवी वर्मा जी की सुंदर रचना का पुनर्पाठ कराने के लिए आभार विवेक जी॥

shikha varshney said...

इस खूबसूरत रचना को फिर से पढवाने का बहुत शुक्रिया.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

महादेवी वर्मा जी को नमन!

रेखा said...

महादेवी वर्मा मेरी पसंदीदा कवित्रियों में से एक है , उनकी यह रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद .

प्रवीण पाण्डेय said...

कालजयी रचना है यह।

डॉ० डंडा लखनवी said...

आपकी साहित्य-धर्मिता को प्रणाम!
====================
प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
====================
’व्यंग्य’ उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
===================
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

पूनम श्रीवास्तव said...

vivek ji
aap ko hriday se badhai deti hun jo aapke blog par aakar in mahan hastiyon se milne ka soubhagy praot hota hai.
isse bhi achhi baat jiko aaj ki yuva pidhi nahi jante vo bhi inke dwara likhe gaye lekhon .rachnao aur atut sahityon se vanchit na rahen.
apne yug ki kal- jai rachnaye v lekhon ko likhne wali mahan kaviyatri ji ko mera shat -shat naman
aur aapko hardik badhai .is sarahniy kary ke liye--
dhanyvaad
poonam

Bharat Bhushan said...

कालेज के दिनों में यह रचना कविता पाठ प्रतियोगिता में किसी को भी एकाध पुरस्कार दिला जाती थी. यह इसकी सशक्तता का प्रमाण है.
याद दिलाने के लिए आपका आभार.

ZEAL said...

Thanks for making us read this precious creation again.

Urmi said...

महादेवी वर्मा जी की रचना पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! उनको मेरा शत शत नमन!

सदा said...

महादेवी जी की इस रचना को पढ़वाने के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ।

Jyoti Mishra said...

mahadevi verma is one of the most effective writer... She has written one of the most read pieces of writing.

Thanks for making us read this !!

bhuvnesh sharma said...

पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आया...कालजयी रचनाओं को एक जगह प्रस्‍तुत करने के लिए साधुवाद

G.N.SHAW said...

पथ न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,most meaningful.

Rachana said...

ye kavita hamesha se hi mere dil ke bahut karib rahi hai
rachana

Maheshwari kaneri said...

महादेवी जी की इस रचना को पढ़वाने के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ।

Vaanbhatt said...

इसे कहते हैं...क्लासिक...

Rajesh Kumari said...

Mahavevi Varma ji ki is behtreen kavita ko padhvaane ke liye dhanyavaad.is kavita ko pahle bhi kai bar padha hai aapke blog par padhne me aur achchi lagi.aapka aabhar.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

आनंद आ गया अपनी मनपसंद कविता पढकर....
वस्तुतः इस ब्लॉग में आकार अच्छा लगा.... आशा है महानतम रचनाकारों के कालजयी रचना संसार में जाने का मार्ग आप यूँ ही प्रशस्त करते रहेंगे....
मेरी हौसला आफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... अपनी आमद बनाए रखे....सादर...

Asha Joglekar said...

Mahadevi jee ki is sunder kawita ko dobara padhwane ke liye aap ka abhar.

Coral said...

रचनाको पढवाने के लिए शुक्रिया

prerna argal said...

मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली!bahut saarthak rachanaa.badhaai aapko.



please visit my blog and feel free to comment.thanks.

Unknown said...

बहुत ही खूब !
मेरी नयी पोस्ट पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

शूरवीर रावत said...

छायावादी युगीन कवि सुश्री महादेवी वर्मा की सभी कवितायेँ हिंदी साहित्य की कालजयी उपलब्धि है. और कालजयी साहित्य को नए आधुनिक माध्यम से पाठकों के समक्ष लाने में आपका योगदान वन्दनीय है.... आभार.

Vivek Jain said...

बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का,
विवेक जैन