दिन अंधेरा, रात काली
सर्द मौसम है
दहशतों की कैद में
लेकिन नहीं हम हैं!
नहीं गौरैया
यहाँ पाँखें खुजाती है
घोंसले में छिपी चिड़िया
थरथराती है
है यहाँ केवल अमावस
नहीं, पूनम है!
गूँजती शहनाइयों में
दब गईं चीखें
दिन नहीं बदले
बदलती रहीं तारीखें
हिल रही परछाइयों-सा
हिल रहा भ्रम है!
वनों को, वनपाखियों का
घर न होना है
मछलियों को ताल पर
निर्भर न होना है
दर्ज यह इतिहास में
हो रहा हरदम है!
-नचिकेता
सर्द मौसम है
दहशतों की कैद में
लेकिन नहीं हम हैं!
नहीं गौरैया
यहाँ पाँखें खुजाती है
घोंसले में छिपी चिड़िया
थरथराती है
है यहाँ केवल अमावस
नहीं, पूनम है!
गूँजती शहनाइयों में
दब गईं चीखें
दिन नहीं बदले
बदलती रहीं तारीखें
हिल रही परछाइयों-सा
हिल रहा भ्रम है!
वनों को, वनपाखियों का
घर न होना है
मछलियों को ताल पर
निर्भर न होना है
दर्ज यह इतिहास में
हो रहा हरदम है!
-नचिकेता
3 comments:
सुन्दर रचना..
बहुत खूबसूरत रचना ,आभार
बहुत खूबसूरत रचना ,आभार
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